...

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सुहागिन हूँ मैं
सांसों के निरंतर चलने का जश्न क्यों न मनाऊं मैं
क्यों न डूबती इन सांसों से लड़ जॉऊ मैं
इससे पहले की उंगलियों में कम्पन होने लगे
क्यों न तह लगी साड़ियों को पहनू जी जॉऊ मैं
क्यों किसी अवसर का इंतजार करूँ मैं
क्यों रो रोकर जीवन की नैया पार करूँ मैं
सांबले रंग पर क्यों न हँसी की प्यारी सी परत चढाऊँ मैं
लाल रंग सिंदूर का बिंदी लाल लगाऊं मैं
चूड़ियाँ पिया के नाम की कलाई में सजाऊं मैं
उम्र के इस पड़ाव पर क्यों न कर इतराउ मैं
सबके लिए सब कुछ किया ख़ुद के लिए जी जॉऊ मैं
कब टूटेगी सांस की डोरी क्या जानू मैं
यौवन का ये रंग बहुत कम जिम्मेदारी ज़्यादा है
इसके चलते ख़ुद को क्यों विसराउं मैं