...

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खुद से
बिछड़कर खुद से तुझें दूर ज़ाने दूँ कैसे हमसफ़र
आ ही चुका नज़दीक ज़ब कुछ पल कों तो ठहर

सब्र का यू इम्तिहाँ ना ले वक़्त का सताया हू मैं
तेरे बिन कटती ना शब है ना ही होती कोई सहर

ज़ब भी देखा है आईने कों फकत तेरा ही अक्स है
तेरे बिना कोई वज़ूद मेरा कभी आता ही नहीं नज़र

भीगना होता है पानी से बरसों धूप में तपना होता है
बीज जो छोटा सा है यू हीं नहीं हों जाता कोई शज़र

छोटे छोटे लम्हातों से जो तूने दिया इश्क़ का सबक
दिल में तूफ़ा उल्फत का जों ये उसी का है सब असर

© V K Jain