...

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तुम मेरे कभी बन पाओगे क्या?
मैं समंदर की एक प्यासी मछली हू।
मेरी प्यास मिटा पाओगे क्या?
मैं बिन रंग के एक तस्वीर हू,जो चाहे एक रंग को,
रंग बन मेरे जीवन में तुम आ जाओगे क्या?
मैं बिन डोर की पतंग हू,जो तरसे एक डोर को,
डोर बन मेरे जीवन का मेरे साथ उड़ चलोगे क्या?
मैं एक मुरझाई फूल हू,जो तरसे पानी को,
सावन बन फूल को तुम वापस खिलाजाओगे क्या?
मैं नादान ,जो तुझे पुकारे हरदम।
मेरी आवाज सुनकर मेरे पास आओगे क्या?
पहले जितनी मोहब्बत थी तुमको हमसे ,
फिर से उतनी ही मोहब्बत हमसे कर पाओगे क्या?
तुम मेरे कभी बन पाओगे क्या?

© annu_diary