...

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तेरी जिक्र
सुनो!!
सालों बाद देखी तेरी तस्वीरें,
पर तेरे तस्वीरों से मुहब्बत अब हो नहीं पाया।

रोज आया तू ख़्वाबों में,
पर मैं तेरे करीब ना आ पाया।

दुबे रहते थे हम तुझमें और तेरे खयालों में,
आज रूबरू हुए तुझसे ,
पर मुलाकात क्यों हो नहीं पाया??

वहीं हिक्खिचाहट आज भी थी मेरे जहन में,
एक सवाल सी पनप आयी जुबान पर,
तू कल मेरा नहीं था,
क्या आज किसी और का तू हो पाया??

यूं तो मेरा और सपनो का रिश्ता ही कुछ अजीब है,
जो रोज सपना दिखाया , वो हकीकत हो ना पाया।

तेरी लत लगी थी मुझको,
इस्कादर मुझको तेरी आदत लगी है,की
बरसो पहले दिल जलाथा मेरा,
पर आजतक ,मैने सुकून ना पाया।