...

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महफ़िल में तमाशा
हर मोड़ के आगे हमेशा कोई रास्ता नहीं होता
एक उम्र के बाद हर किसी से वास्ता नहीं होता

अजी दिल्लगी थी, मैंने दिमाग की एक न सुनी
वो चीखता रहा, "रुक जाओ, मोहब्बत में क्या - क्या नहीं होता"

बिता दी सारी उम्र जिन्होंने बेशुमार दौलत को समेटने में,
काश समझ लेते, एक हद से ज़्यादा, समुंदर में भी इज़ाफ़ा नहीं होता

बस यहीं आकर भले लोग खा जाते हैं मात,
कि हर मुस्कुराने वाले का नेक इरादा नहीं होता

आशिकी में ज़िंदगी बिसर कर देने वालों के लिए
महबूब की डोली से बड़ा , कोई जनाज़ा नहीं होता

कचरा चुनते यतीम बच्चों को देखा तो समझ आया
ये दुनिया है , यहाँ हर चिट्ठी पे लिफाफा नहीं होता

वक्त को रेत की तरह हँस के उड़ाने वालों के लिए
ज़माने की हँसी से करारा, कोई तमाचा नहीं होता

सिर्फ रंगीन ग़ज़ल पीने के शौकीनों से कह दो आज़ाद
जब तक मेरी जाम से दर्द न छलके, महफ़िल में तमाशा नहीं होता



Seems like I've finally adopted a pen- name: आज़ाद (it means one who is free)
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© Adarsh Bhardwaj