...

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विरह
ओ री सखी!
अरे मोरी सखी,
रंग मोहे पे डार दे;
होरी के रंगों संग,
मुझे भी निखार दे;
मुझे भी मेरे कान्हा सा,
प्रेम कला में तार दे;
कह उठे न जाऊं छोड़,
जो तू मुझे जो प्यार दे;

ओ री सखी!
मन मोह री सखी,
मेरे मन कि पीरा जान री,
मुझ संग कान्हा को बांध री।