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घर जाने का इंतजार
जैसे सूरज पूरब से पश्चिम जाने लगा
हर कोई अपने अपने घर जाने लगा
चाहे हो कोई अफसर या मजदूर
चाहे जिस कारण वो रहते हों
अपने घर से दूर
शाम होने का सबको रहता है इंतजार
अपने अपने घर जाने को रहते हैं तैयार
सूरज की लालीमा बादलों में अभी छुपी
आकाश में दिखने लगी पक्षियों की कतार
अपने अपने घोसलों में जाने को बेकरार
गुंज रही थी हर तरफ उनकी चींचीं आवाज
कितने बेकरार थे वे सब
जल्दी घर पहुंचने की जैसे लगी थी होड़
कौन कितनी तेजी से लगाता आकाश में दौड़
किसी का कोई इंतजार कर रहा था
किसी की भुख किसी को बेकरार कर रही थी
किसी को अपना घोसला उजड़ जाने का डर
किसी का चूजा भुख से रहा मर
ये कैसी बिडम्बना है
इंसान हो या पक्षी या फिर जानवर
हर किसी को अपनो की मोह ने ,
जकड़ा हुआ है ।।
हर कोई अपने अपने घर जाने लगा
चाहे हो कोई अफसर या मजदूर
चाहे जिस कारण वो रहते हों
अपने घर से दूर
शाम होने का सबको रहता है इंतजार
अपने अपने घर जाने को रहते हैं तैयार
सूरज की लालीमा बादलों में अभी छुपी
आकाश में दिखने लगी पक्षियों की कतार
अपने अपने घोसलों में जाने को बेकरार
गुंज रही थी हर तरफ उनकी चींचीं आवाज
कितने बेकरार थे वे सब
जल्दी घर पहुंचने की जैसे लगी थी होड़
कौन कितनी तेजी से लगाता आकाश में दौड़
किसी का कोई इंतजार कर रहा था
किसी की भुख किसी को बेकरार कर रही थी
किसी को अपना घोसला उजड़ जाने का डर
किसी का चूजा भुख से रहा मर
ये कैसी बिडम्बना है
इंसान हो या पक्षी या फिर जानवर
हर किसी को अपनो की मोह ने ,
जकड़ा हुआ है ।।
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