निर्देशों के बिना मानचित्र
चला मैं सफर पर बिना नक्शे के,
न कोई दिशा, न कोई बंधन,
हवा ने चुपके से कानों में कहा,
“तू ही है अपनी मंज़िल का स्पंदन।”
रास्ते थे धुंधले, पर दिल था साफ,
पेड़ों की सरसराहट ने दी आवाज़,
पलकों के नीचे छिपे सवालों ने,
खुद ही दे दिए अपने सारे जवाब।
नदियों के किनारे कदमों ने गाया,
राहें चाहे...
न कोई दिशा, न कोई बंधन,
हवा ने चुपके से कानों में कहा,
“तू ही है अपनी मंज़िल का स्पंदन।”
रास्ते थे धुंधले, पर दिल था साफ,
पेड़ों की सरसराहट ने दी आवाज़,
पलकों के नीचे छिपे सवालों ने,
खुद ही दे दिए अपने सारे जवाब।
नदियों के किनारे कदमों ने गाया,
राहें चाहे...