सब कुछ नया सा
#शहरीदृश्यकाव्य
आंखों को सब कुछ नया सा लगे है
जब मेरे पाँव शहर में चले हैं।
ऊंची इमारतें आसमान से करती बातें
ज़मीन पर गाड़ियों के रेले लगे हैं।
भागती दौड़ती ज़िन्दगी व्यस्तता के साथ,
सांस लेने की भला किसे फुर्सत मिले है।
जुबां पर पानी ले आते खाने के आइटम
लाइन से यहाँ देखो रेस्टोरेंट खड़े हैं।
एक call पर देखो ola है आ जाती ,
अब चलने पर कहाँ पाँव दुखे है।
दुकान दुकान भटकने का अब रिवाज़ नही
A to Z सारे सामान माल्स में मिले हैं।
शाम होते ही जगमग सड़के,और दुकानें
दीवाली सा यहां रोज मंज़र लगे है।
माना कि सब सुविधा है यहाँ मगर,
अपनो के लिये यहाँ वक़्त कम मिले है।
सुख दुख जो गांव के आँगन में बांटा जाता था
उसकी कमी यहाँ बहुत ही खले है।
शहर बहुत खूबसूरत है मगर,
दिल को एक खालीपन सा लगे है।
आंखों को सब कुछ नया सा लगे है
जब मेरे पाँव शहर में चले हैं।
ऊंची इमारतें आसमान से करती बातें
ज़मीन पर गाड़ियों के रेले लगे हैं।
भागती दौड़ती ज़िन्दगी व्यस्तता के साथ,
सांस लेने की भला किसे फुर्सत मिले है।
जुबां पर पानी ले आते खाने के आइटम
लाइन से यहाँ देखो रेस्टोरेंट खड़े हैं।
एक call पर देखो ola है आ जाती ,
अब चलने पर कहाँ पाँव दुखे है।
दुकान दुकान भटकने का अब रिवाज़ नही
A to Z सारे सामान माल्स में मिले हैं।
शाम होते ही जगमग सड़के,और दुकानें
दीवाली सा यहां रोज मंज़र लगे है।
माना कि सब सुविधा है यहाँ मगर,
अपनो के लिये यहाँ वक़्त कम मिले है।
सुख दुख जो गांव के आँगन में बांटा जाता था
उसकी कमी यहाँ बहुत ही खले है।
शहर बहुत खूबसूरत है मगर,
दिल को एक खालीपन सा लगे है।