...

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याद भरी टॉफीया
#स्मृति_कविता
कुछ लम्हें चुरा लाना चाहती हूँ बचपन से
वो ज़ब पापा हर रोज शाम टॉफीया लाया करते
सबको एक पर मूझे दो दिया करते
चुपके से टॉफ़ीयो के साथ मेरे नन्हें हाथों में कुछ खंकते पैसे भी थमा दिया करते
कुछ खास पसंद नहीं थी मूझे वो टॉफीया पर मूझे दो मिलती तो मैं खुश हो जाया करती
और ये राज सबसे छुपाए रखती
अगली शाम फिर पापा के आने का इंतजार करती
सब बच्चे खेलते पर मैं दरवाज़े पर अपनी टक टकी लगाए रखती
लम्हें वो कुछ खास थे
भुला ना सकू कभी ऐसी कुछ याद थे




© K