दोहा - ०२ ( प्रेम )
दोहा - ०२ ( प्रेम )
बोया बीच मैं प्रेम का
प्रेम का देख्या रंग
दिन-रात आठों पहर
मैं देख्या रंग तरंग
रंग-तरंग इस देह का
माटी देख्या रंग
आ माटी सब धूरी मिले ,
प्रेम का लख-लख ढ़ंग
दौ रंग प्रेम ना उपजै
प्रेम का एकल...
बोया बीच मैं प्रेम का
प्रेम का देख्या रंग
दिन-रात आठों पहर
मैं देख्या रंग तरंग
रंग-तरंग इस देह का
माटी देख्या रंग
आ माटी सब धूरी मिले ,
प्रेम का लख-लख ढ़ंग
दौ रंग प्रेम ना उपजै
प्रेम का एकल...