बालात्कार
किसीने अपने ग़ुरूर के लिए नोचा,
तो किसीने अपनी हवस के लिए दबोचा,
अगर ना करें हम तुम्हारा स्वीकार,
तो कर देते हो हमारा बालात्कार,
हर दिन बढ़ते ही रहते है ऐसे हैवानियत के किस्से,
समझ नहीं आता क्यों लिखें है ऐसे शारीरिक और मानसिक दर्द लड़कियों के हिस्से,
लड़की होंना कोई गुनाह तो नहीं,
क्योंकि लड़कीका जन्म देना तो रब की मर्ज़ी है हमने तो ये चुना नहीं,
क्यों होती है हमारे न्याय में देरी,
जब की पूरा देश जानता है कौन है दोषी,
हमारे कपड़ों की दुहाई देते हो,
पर उसपे क्या कहोगे ए समाज जो महीनों की बच्चियों और नब्बे साल की अम्मा है साथ भी दरिंदगी करते है?
थोड़ी सी सोच बदलो, देश बदलेगा,
वरना ऐसे ही नारी शक्ति का अपमान होता रहेगा।
-जानकी
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