प्रेम
इस दौर में प्रेम का जितना विकृत रूप देखने को मिल रहा है, शायद पहले कभी नहीं देखा गया। अधिकतर लोग प्रेम का असल मतलब नहीं समझते, या समझना नहीं चाहते। वे प्रेम के नाम पर कुछ और ही कर रहे हैं, और जब इसका नकारात्मक प्रभाव उनके जीवन पर पड़ता है, तो सारा दोष प्रेम के सिर मढ़ देते हैं। फिर लोगों को चिल्ला-चिल्लाकर बताते हैं कि "प्रेम मत करना, इसमें बहुत दुख, मुसीबत, वेदना और कष्ट है।" धीरे-धीरे पूरा समाज भी इस सोच का समर्थन करने लगता...