देख आईने को रूबरू...।।
देख आईने को रूबरू मैं, संवर सा जाता हूं।
मिलता ख़ुद ही खुद से मैं, खिल सा जाता हूं।
देख आईने को रूबरू...।।
दो कश्ती में चल ही रही होती है जिंदगी,
के मिलके खुद से, मैं आसान हर सवाल...
मिलता ख़ुद ही खुद से मैं, खिल सा जाता हूं।
देख आईने को रूबरू...।।
दो कश्ती में चल ही रही होती है जिंदगी,
के मिलके खुद से, मैं आसान हर सवाल...