...

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इंतजार...
इत्तेफ़ाक़ से मिले कदम हमारे,
मानो कुदरत का करिश्मा हो।
दिल हमारे ऐसे मिले,
मानो घेवर पर गिरी चाशनी हो।

आपके दिल के इस आंगन को,
हमने हरा-भरा है पाया।
आपकी बातों में हमने,
सदा अपने आप को है पाया।

सब कुछ सरल हो,
ये कुदरत को मंजूर कहां?
हर पड़ाव में इम्तिहान ना हो,
ये कभी हो सकता है भला ?

रो रही थी मैं मन के भीतर,
ये फ़ासले मुझे मंजूर नहीं।
है देश के पास हजारों जवान,
हे प्रियवर! बस...