ग़ज़ल लिख रहे है
एक लेखक जो सोचें वो ख्याल हो तुम,
मन मे जगा दो वो हजारों सवाल हो तुम,
जिन गलियों के अँधेरे में मैं जो भटकुं
उन्ही गलियों में जलती एक मिसाल हो तुम,
जिन बर्फ़ीली सर्द रातों मे ये बदन जो कप कापाये
उसपर लिपटने वाला वो रेशमी शॉल हों तुम,
जब गर्मियों से मेरे हाल जो बेहाल हो
रेगिस्तान में अचानक मिल जाने वाली
वृक्ष की वो छाँव हो तुम,
नैनो में...
मन मे जगा दो वो हजारों सवाल हो तुम,
जिन गलियों के अँधेरे में मैं जो भटकुं
उन्ही गलियों में जलती एक मिसाल हो तुम,
जिन बर्फ़ीली सर्द रातों मे ये बदन जो कप कापाये
उसपर लिपटने वाला वो रेशमी शॉल हों तुम,
जब गर्मियों से मेरे हाल जो बेहाल हो
रेगिस्तान में अचानक मिल जाने वाली
वृक्ष की वो छाँव हो तुम,
नैनो में...