...

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ओ शहर
शहर तेरी याद बहुत आती है..
मेरे जेहन में अभी भी वो तेरी तस्वीर याद आती है..
तेरे नुक्कड़ की उस कठ्ठी - कचौड़ी की वो महक याद आती है..
याद आती है हर एक वो चीज़ जो अपने संग बटोर कर लाया था मैं
उस गली की वो खुलती बंद होती खिड़की याद आती है ..
चौराहे के उस मंदिर की घंटी , मस्जिद की अज़ान याद आती है..
बागीचों में बच्चों की खिलखिलाहट , बुजुर्गों की चहलकदमी याद आती है ..
पतझड़ में पत्तों की सरसराहट, सावन की पहली रिमझिम बरसती बारिश याद आती है..
हां अभी भी सब याद है मुझे ।
© मैं अजमेरी