देखा है।
एक आग सी जलती थी उसमें
वो नूर खुदा का लगता था,
जिसकी बस एक झलक को मैं
रातों - रातों तक जगता था।
शायद वो मुझसे रूठा है,
शायद उसका दिल टूटा है,
या मुझसे उसको प्यार नहीं,
शायद वह बड़ा ही झूठा है।
कर भी क्या सकते हैं, शायद
हाथों में ना प्यार की रेखा है,
एक जवां सुबह कैसे ढलती
मैंने रोते रोते देखा है।
वो नूर खुदा का लगता था,
जिसकी बस एक झलक को मैं
रातों - रातों तक जगता था।
शायद वो मुझसे रूठा है,
शायद उसका दिल टूटा है,
या मुझसे उसको प्यार नहीं,
शायद वह बड़ा ही झूठा है।
कर भी क्या सकते हैं, शायद
हाथों में ना प्यार की रेखा है,
एक जवां सुबह कैसे ढलती
मैंने रोते रोते देखा है।