...

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दिल्ली में...
गुम है दिल्ली में दिल मेरा,
दिल मेरा गुम है दिल्ली में।

खबरों में, अखबारों में,
चीखते चिल्लाते, बाजारों में,
निर्दई बहुत बलात्कारों में,
तरक्की करते व्यापारियों में।

सड़कों, मोहल्लों, गलियारों में,
गार्डन के फव्वारों में,
किस्सों में, कहानियों में,
होटलों में, मकानों में।

कई आज़ादी कि कहानियों में,
एयरपोर्ट में, मेट्रो में,
वेट करते लोग बस अड्डों में,
इंडिया गेट सी कई इमारतों में।

मज़हब से ना बंधे कभी,
जामा मस्जिद के मकबरे में,
पैनी राजाओं की तलवारों में,
नई सोच, नए आयामों में।

इश्कबाज़ और छिछोरों में,
लड़की छेड़ते लड़के स्टोपों में,
इश्क़ फरमाते जोड़ों में,
न्याय के भवनों में।

ख़तम ना होते गुनाहों में,
किसी के इंतजार और इंकार में,
बोली में, चेहरों की रंगोली में,
बदलते रोज़ किरदारों में।

शुरू होती रोज़ नई तकलीफों में,
नए कलाकारों में, बेचारों में,
बेकार हुए, बेरोजगारों में,
वीडियो की ज़िन्दगी में।

हादसों में, गंगा किनारों में,
कभी ना सोती, सड़कों में,
हत्यारों में, ईमानदारों में,
अलग अलग किरदारों में।

गुम है दिल्ली में दिल मेरा,
दिल मेरा गुम है दिल्ली में।

© a_girl_with_magical_pen