...

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दर बदर
मैं दर बदर भटका हूं
उसके ही गली, मैं कई पहर भटका हूं

मेरे लिए भी वो पुराना याद ही बचा
जिस शहर, मैं कई पहर भटका हूं

मुझे अब बस उसी के छांव बैठना
जिस शज़र को ढूंढ़ते दो पहर भटका हूं