बेटियां
#WritcoPoemChallenge
हैरान हूं समाज के संकीर्ण सोच से,
क्या समझते हैं बेटियों को बोझ वो।
माना बेटी पिता की जिम्मेदारी है,
परंतु उन्हें बेड़ियो में बांधना कौन सी समझदारी है।
उसकी अपनी जिंदगी है, जीना उसे है,
फिर क्यों दुनिया बेटियों के पीछे उलझे हैं।
बेटियों को हिदायत नहीं, हिम्मत दीजिए,
उन्हें ज्यादा समझाने की...
हैरान हूं समाज के संकीर्ण सोच से,
क्या समझते हैं बेटियों को बोझ वो।
माना बेटी पिता की जिम्मेदारी है,
परंतु उन्हें बेड़ियो में बांधना कौन सी समझदारी है।
उसकी अपनी जिंदगी है, जीना उसे है,
फिर क्यों दुनिया बेटियों के पीछे उलझे हैं।
बेटियों को हिदायत नहीं, हिम्मत दीजिए,
उन्हें ज्यादा समझाने की...