बेटियां
#WritcoPoemChallenge
हैरान हूं समाज के संकीर्ण सोच से,
क्या समझते हैं बेटियों को बोझ वो।
माना बेटी पिता की जिम्मेदारी है,
परंतु उन्हें बेड़ियो में बांधना कौन सी समझदारी है।
उसकी अपनी जिंदगी है, जीना उसे है,
फिर क्यों दुनिया बेटियों के पीछे उलझे हैं।
बेटियों को हिदायत नहीं, हिम्मत दीजिए,
उन्हें ज्यादा समझाने की नहीं, समझने की कोशिश कीजिए।
हां,वो पिता की पगड़ी और मां की ममता है
हर मुकाम को हासिल करने की क्षमता है।
अंगुली उठाने के बजाय, उंगली पकड़कर मार्गदर्शन करना उचित होगा,
भेदभाव बंद कीजिए, तभी उनका विकास समुचित होगा।
अभी पत्नी, मां, बहन और ना जाने कितने किरदार निभाती है,
फिर भी दुनिया वैसे ही लिहाज की पाठ पढ़ाती हैं।
बेटों से बढ़कर बेटियों की अहमियत है,
बेटियां पैदा होते हैं जिनके घर, खुश नसीब वह शख्सियत होते हैं।
बेटियां कठपुतली नहीं, वह भी इंसान है,
उसके भी अपने
हैरान हूं समाज के संकीर्ण सोच से,
क्या समझते हैं बेटियों को बोझ वो।
माना बेटी पिता की जिम्मेदारी है,
परंतु उन्हें बेड़ियो में बांधना कौन सी समझदारी है।
उसकी अपनी जिंदगी है, जीना उसे है,
फिर क्यों दुनिया बेटियों के पीछे उलझे हैं।
बेटियों को हिदायत नहीं, हिम्मत दीजिए,
उन्हें ज्यादा समझाने की नहीं, समझने की कोशिश कीजिए।
हां,वो पिता की पगड़ी और मां की ममता है
हर मुकाम को हासिल करने की क्षमता है।
अंगुली उठाने के बजाय, उंगली पकड़कर मार्गदर्शन करना उचित होगा,
भेदभाव बंद कीजिए, तभी उनका विकास समुचित होगा।
अभी पत्नी, मां, बहन और ना जाने कितने किरदार निभाती है,
फिर भी दुनिया वैसे ही लिहाज की पाठ पढ़ाती हैं।
बेटों से बढ़कर बेटियों की अहमियत है,
बेटियां पैदा होते हैं जिनके घर, खुश नसीब वह शख्सियत होते हैं।
बेटियां कठपुतली नहीं, वह भी इंसान है,
उसके भी अपने