...

3 views

मेरे मन बता
मेरे मन बता तू उदास क्यूँ है
कर रहा जो कुछ ये ठीक है
ज़िकर क़ी बता फ़िर क्या बात है

खिले कली या मुरझाये भला कब
जाने ख़ुद कुल जहान का ये माली
बता फ़िकर क़ी फ़िर क्या बात है

धुप छाँव का खेल रचा है इसीने
ये कायनात चले इसी के इशारे से
अच्छे-बुरे क़ी बता फ़िर क्या बात है

मौजूद है ज़मी पर रुहों का सौदागर
हर रुह क़ी चाहतों क़ी ख़ुद ये चाहत
ओर चाहत क़ी बता फ़िर क्या बात है।

© अनिल अरोड़ा "अपूर्व "