...

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कुरुkshetra से अdhik - 'मन'
दिन में कोई जीने नहीं देता
रात को जीने का उत्साह सोने नहीं देता।

सुबह फिर धूप खिलती है
और मेरी हसी मुर्जाती है।

रात को फिर चाँद खिलता हैं
और मेरा चेहरा खिल उठता है।

उस अंधकार में चांद टीम टिमटे तारे दिखाता है
और मेरी आंखे तारो के बीच चमकती है।

इस दोपहर और शाम के बीच में
दिन और रात के अंतर में
एक युद्ध चलता है
मेरे दिल और दिमाग के बीच (में)।
मेरी खामोशी और शोर के बीच (में)।
मेरी चीख और शांति के बीच (में)।
मेरे अभिमान और विनम्रता के बीच (में)।
मेरी खुशी और दुख के बीच (में) ।
मेरी जिंदगी और मौत के बीच (में) ।
मेरे और मेरे बीच (में)।

क्या इसे ही कहते है
अपना सबसे बड़ा दुश्मन होना?
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