इश्क का वक़्त
इश्क छुपता रहा मेरा
जमाने की निगाहों से।
आज मेरी निगाहों से
भी ओझल हो गया है।।
मुहब्बत फिर जमाने से
बगावत चाहती थी।
मगर वो वक़्त अब गुजरा
हुआ कल हो गया है।।
Samar
जमाने की निगाहों से।
आज मेरी निगाहों से
भी ओझल हो गया है।।
मुहब्बत फिर जमाने से
बगावत चाहती थी।
मगर वो वक़्त अब गुजरा
हुआ कल हो गया है।।
Samar