आनॅलाइन ( कविता )
ऑनलाइन का है जमाना
अब भ्रष्टाचार से कैसा घबराना ।
वो बात अलग है बेईमानो की
वो तो समुद्र की लहरे गिनने मे भी बेईमानी कर लिया करते है
वो ही करपॅशन के नाम पर इंडिया मे दूसरो को गाली दिया करते है ।
बच्चों का दाखिला या हो शिक्षा अब तो ऑनलाइन हुआ करता है।
न जाने स्कूल डेवलपमेंट के नाम पर किस का भला हुआ करता है ।
अब तो दुकानदार भी अब ऑनलाइन पेंमट लिया करता है
पर न जाने कितना माल बिना बिल ही दिया करता है। सरकारी पेमंट भी अब तो ऑनलाइन हुआ करता है
पर उस दफ्तर का चपरासी न जाने फाईल क्यो आगे पीछे किया करता है ।
सरकारी बाबू का क्या दोष है फाईल मे आब्जेक्शन आना भी तो उसे रोकने का एक अच्छा तोड़ है ।
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अब भ्रष्टाचार से कैसा घबराना ।
वो बात अलग है बेईमानो की
वो तो समुद्र की लहरे गिनने मे भी बेईमानी कर लिया करते है
वो ही करपॅशन के नाम पर इंडिया मे दूसरो को गाली दिया करते है ।
बच्चों का दाखिला या हो शिक्षा अब तो ऑनलाइन हुआ करता है।
न जाने स्कूल डेवलपमेंट के नाम पर किस का भला हुआ करता है ।
अब तो दुकानदार भी अब ऑनलाइन पेंमट लिया करता है
पर न जाने कितना माल बिना बिल ही दिया करता है। सरकारी पेमंट भी अब तो ऑनलाइन हुआ करता है
पर उस दफ्तर का चपरासी न जाने फाईल क्यो आगे पीछे किया करता है ।
सरकारी बाबू का क्या दोष है फाईल मे आब्जेक्शन आना भी तो उसे रोकने का एक अच्छा तोड़ है ।
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