...

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भाव के पंक्षी
अंतःकरण की प्यास को खुद के शब्दों से बुझा रहा हूं ,
डर लगता है असफल होने से , इसिलए असत्य सत्य को झुठला रहा हूं ।
इस भाव मे गरिमा के लिए उड़ना पड़ता है ,
अपने परों को खोल कर कुछ करना पड़ता है ,,
सामान्य की कोई पूछ नही है इस जग में , असामान्य होकर जीना पड़ता है ।
ये भाव के पंछी समझते नही की तेरे गिरने में तेरी हार नही तू इंसान है कोई अवतार नहीं ।
न सफल हो पाए तो भी तेरे साथ तेरा परिवार है , जो ना साथ होकर भी शायद तेरे साथ है ।
कर की लकीरों में ही जब सादगी हो तो हम क्या करे ,
ख्वाबो के अंक खाली रह गए बेशक हमारी ही गलती रही होगी ।
काश परीक्षा के तरह जिंदगी में भी चार ऑप्शन होते , गलत पे माइनस 1 और सही पे प्लस चार मिलते ।
मैं ना रहा तो परिवर्तन किसका करोगे , अपने गरिमा के लिए किसके मेहनत को रजधूल करोगे , तुम इन अंको से मेरी संभावनाएं बात देते हो , मेरी औकात देखने ही है तो कुछ वक्त देकर देखते ।
पर अब बहुत देर करदी तुमने , शायद अब मैं मैं ना रहा तुम्हें जी कर के।
© saransh07