...

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याद आती हैं तुम्हारी....

याद आती है तुम्हारी
धुंधली धुंधली सी
अक्सर
कभी भी..
कहीं भी...
पर आज याद किया है तुम्हें मैंने
किसी को हमारे रिश्ते के सच
को बताने के लिए..
इक बार गहरायी से
फिर महसूस किया है तुम्हें
तुम अतीत हो.. फ़िर भी
तुम्हारी बातों.. मस्ती.... वादों
गानों... औऱ तुम्हारे प्यार को....
जान बूझ कर
उतरी हू बिन तुम्हारे
हमारे अमान्य
और अपूर्ण
प्रेम के दरिया मे....
सब स्वप्न सा हो गया है
पर बहुत कुछ सीखा गया
हम अकेले ही है
औऱ.. खुद को ही
प्रेम कर बैठी आज मैं
इक बार...यूँही
© Madhumita Mani Tripathi