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बताओ, क्यों?
सोच रही थी,
तुम पर फ़िर कोई कविता लिख लूं।
पर आज तुम ही बताओ,
तुम्हारे नाम स्याही क्यों बिखेरूं ?
जाना तुम्हें दूर था और,
इसका गुरूर भी तुम्हें था!
तो बताओ तुम्हें यूं याद क्यों करूँ?
पर देखो न सोच ही ली तुम्हें।
इस लम्हें याद करली तुम्हें।
पर अब तुम बताओ,
तुमसे कोई जज़्बात क्यों कहूं?
क्यों तुमसे कोई बात करूँ?
© KALAMKIDIWANI
तुम पर फ़िर कोई कविता लिख लूं।
पर आज तुम ही बताओ,
तुम्हारे नाम स्याही क्यों बिखेरूं ?
जाना तुम्हें दूर था और,
इसका गुरूर भी तुम्हें था!
तो बताओ तुम्हें यूं याद क्यों करूँ?
पर देखो न सोच ही ली तुम्हें।
इस लम्हें याद करली तुम्हें।
पर अब तुम बताओ,
तुमसे कोई जज़्बात क्यों कहूं?
क्यों तुमसे कोई बात करूँ?
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