...

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एक जाम, एक बोतल और उसका गम
एक जाम, एक बोतल और उसका गम
जल्दी कर सकी बाकी है रात कम

रात को भी दिन सा उजाला करते हो
ए सितारों ज़रा करो अपनी रोशनी कम

वो आए और उलझा गए जिन्दगी मेरी
खोलने बैठा ही था मैं उसके पेचों-खम

गर था वो इत्तेफाक तो आज क़फ़स
सोचकर क्यों उसे तेरी आंखें है नम

हम रिंद तुझको कमजर्फ न कहे शैख
गरचे तू पीए बहुत और बहके कम

भीड़ में मैंने जब भी तुझे पुकारा
पत्थर ही नज़र आए और हाथ कम

शबे गम बस खत्म हुई पर सहर तक
देखो हो...