उपालम्भ
आत्म परित्राण में परित किए आच्छादित कितने आवरण।
स्व वपु परिपोषण हेतु किए भक्षण तनु कितने आमरण
प्रभु पार्थिव पर्वत पर प्रदूषित हैं स्रोतस्विनियां अथाह
ग्लानी से परिपूर्ण संपूर्ण असु में भी तो है असुरभि प्रवाह
मन को मथता मदन मनमोहन मधु में मन्द मरुत प्रसार
दावाग्नि से भीषण जठराग्नि से तीक्ष्ण कामाग्नि का विस्तार
मन उर्वरा पर उपजा अति कलुषित कामना कानन
राग द्वेष के...
स्व वपु परिपोषण हेतु किए भक्षण तनु कितने आमरण
प्रभु पार्थिव पर्वत पर प्रदूषित हैं स्रोतस्विनियां अथाह
ग्लानी से परिपूर्ण संपूर्ण असु में भी तो है असुरभि प्रवाह
मन को मथता मदन मनमोहन मधु में मन्द मरुत प्रसार
दावाग्नि से भीषण जठराग्नि से तीक्ष्ण कामाग्नि का विस्तार
मन उर्वरा पर उपजा अति कलुषित कामना कानन
राग द्वेष के...