!...काश! हम भी उनके हो पाए..!
मैं
कितनी जुस्तुजू
लेकर चला था
ये सोच कर
कि इश्क़ के शहर में
हम भी तेरा दीदार करेंगे
हां! हम भी तुमसे बात करेंगे
ये गलतफहमियां ये उम्मीदें
वाबस्ता थी मेरे दिल में
मगर
मेरे मोहब्बत का मयार
शायद इस काबिल ही न था कि
उन के दर की चौखट का
दीदार भी हम को हो पाए
काश!...
कितनी जुस्तुजू
लेकर चला था
ये सोच कर
कि इश्क़ के शहर में
हम भी तेरा दीदार करेंगे
हां! हम भी तुमसे बात करेंगे
ये गलतफहमियां ये उम्मीदें
वाबस्ता थी मेरे दिल में
मगर
मेरे मोहब्बत का मयार
शायद इस काबिल ही न था कि
उन के दर की चौखट का
दीदार भी हम को हो पाए
काश!...