...

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हथियार
इंसानियत की सीमाओं को तोड़कर,
भलाई की मार्ग को छोड़कर।
विकास के नाम पर,
लगे हैं विनाश के कम पर।

पृथ्वी को नाम से,किया जा रहा है खंडन,
खुद की रक्षा के लिए तैयार कर रहे हैं सीमरुपी बंधन।

सीमाओं के बंधन में जकड़र ,
अपनत्व की भावना को भूलकर,
इंसानियत चढ़ रहा है, विकास के शुल पर।

बदल चुकी है परिभाषा विकास की,
जमीं भी नहीं है अपनी, फिर भी लालच है पूरे आकाश की।
रक्षा के लिए तैयार है हजार हथियार,
यह हथियार नहीं, ये है नरसंहार।


खून बह रही है,
बहाने वाला कोई और नहीं, सब अपने हैं।
अब अपने,अपने कहां,
यह सब तो सपने हैं।

अणुओं से मिलकर बना है यह धरती,...