...

26 views

हथियार
इंसानियत की सीमाओं को तोड़कर,
भलाई की मार्ग को छोड़कर।
विकास के नाम पर,
लगे हैं विनाश के कम पर।

पृथ्वी को नाम से,किया जा रहा है खंडन,
खुद की रक्षा के लिए तैयार कर रहे हैं सीमरुपी बंधन।

सीमाओं के बंधन में जकड़र ,
अपनत्व की भावना को भूलकर,
इंसानियत चढ़ रहा है, विकास के शुल पर।

बदल चुकी है परिभाषा विकास की,
जमीं भी नहीं है अपनी, फिर भी लालच है पूरे आकाश की।
रक्षा के लिए तैयार है हजार हथियार,
यह हथियार नहीं, ये है नरसंहार।


खून बह रही है,
बहाने वाला कोई और नहीं, सब अपने हैं।
अब अपने,अपने कहां,
यह सब तो सपने हैं।

अणुओं से मिलकर बना है यह धरती,
फिर अणुओं में बंट रही है धरती।
यह विकास नहीं, अवकाश है,
हां अवकाश, पृथ्वी पर से जीवन का अवकाश।

टुकड़ों रुपी देश से है बनती धरती,
देशों के नियम से,धरती पर है जीवन चलती।
अब यह किसी के नहीं है मोहताज,
इंसानियत की फिक्र नहीं, इन्हें तो हैं देश का ताज।

हर देश की अपनी अलग है नाम और पहचान,
सब ने लिखे हैं रेतों पर अपने-अपने नाम।

देश की गौरव परमाणु हथियार,
हर कोई, हर एक को अपने निशाने पर लेकर है तैयार।

अब हर कोई है किम जोंग,
सब ने पहन रखी है शराफत का ढोंग।

यह जो है आधिपत्य की लालसा,
मनुष्य के सर पर नाच रहा है काल सा।

हर देश, हर देश पर है भारी,
हर वक्त होती है इनकी युद्ध की तैयारी।

परमाणु गिरते तो देश पर है, पे मरते हैं इंसान
देश क्या, एक के इशारे पर, देश बनते हैं श्मशान।

अंत देश का नहीं, होता अंत पृथ्वी का एक टुकड़ा,
देश नहीं, इंसानों को है खतरा।

समय अभी बाकी है, सुधर जाओ इंसान,
विनाश से नहीं होता,पूरा किसी का अरमान।