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परनिंदा सम सुख अन्यत्र नाहिं(व्यंग्य-लेख)
परनिंदा-सम सुख अन्यत्र नाहिं

(व्यंग्य-लेख)

इस दुनिया में सुखों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। हर व्यक्ति के लिए सुख की परिभाषा अलग है और सुखी होने का पैमाना विभिन्न है लेकिन तमाम सुखों में एक ऐसा सुख भी है जो मानव जाति में बहुतया पाया जाता है और वह सुख है- परनिंदा सुख । निंदा करने में जो सुख है वह सारे सुखों को एक तरफ़ कर अपनी गहरी पैठ बना लेता है। यदि परनिंदा करने वाले जीवों की बात करें तो ये सर्वत्र विद्यमान हैं। दुनिया का शायद ही कोई कोना ऐसा हो जो इनकी कृपा से अछूता रहा हो। ये जीव देखने में बिल्कुल मनुष्य की ही भाँति दिखाई देते हैं। इन जीवों की एक खास विशेषता यह है कि ये चेहरे का रंग व हाव-भाव बदलने में बहुत ही कुशल होते हैं। ये कब कौनसा रूप रंग बदल लें, यह कहना मुश्किल है। ये जीव हमारे अपने घर वाले, रिश्तेदार, पड़ोसी अथवा सहकर्मी होते हैं। इनकी पहचान तो मुश्किल होती है लेकिन इनसे पाला तब पड़ता है जब आप इनसे कोई भी बात करते हैं तो ये उस खानसामा का काम करते हैं जो साधारण से भोजन को अच्छी तरह नमक मिर्च का तड़का लगाकर अगली कड़ी को परोस देते हैं। निंदक जाति की महानता के बारे में स्वयं कबीरदास जी ने भी लिखा है कि

निंदक नियरे राखिए, आँगण कुटि छवाय,

बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय ।

अर्थात ऐसे व्यक्तियों को हमें आसपास रखना चाहिए क्योंकि इनकी निंदा के कारण हमारा स्वभाव बिना साबुन बिना पानी के निर्मल अर्थात दोषरहित होता है। और इस प्रकार इनकी महिमा का गुणगान बड़े-बड़े कवि व विद्वान भी अपने व्याख्यान व लेखनी के द्वारा करते आए हैं। इस बात से से यह तो सिद्ध हो जाता है कि इस प्रजाति का कार्य समाज में अबाध निर्बाध गति से चलकर कलमकारों की भी वाणी से प्रस्फुटित होकर अपना स्थान बनाकर खुद को जीवित रखना है।

यह निंदक जाति दिमाग से इतनी बेफिक्र होती है कि मानो इस धरती पर उनके आने का उद्देश्य सारे कांड करके फ्री माइंड रहना हो। इनकी वाणी में व्याप्त ज़हर किसी की भी खुशी को दंश मार देता है। ख़ैर युगों तक इनकी प्रजाति पृथ्वी को सुशोभित करती रहेगी। बहरहाल अपने आसपास चेहरे बदलकर बैठी हुई इस भयंकर प्रजाति से सावधान रहें और इनकी अधपकी व अधजली बातों में से सही व लाभदायक स्वाद को ग्रहण कर जीवन में आगे बढ़ते रहें।

-सीमा शर्मा 'असीम'

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© ©सीमा शर्मा 'असीम'