दो जिस्म एक जान
अधरों से अधरों ने मिलके
कल रात एक दूजे का हर राज़ जाना ,
रूह से रूह ने मिलके सीखा
देह का हर एक दाग़ छुपाना !
दो जिस्मों ने कल रात मिलके
एक नयी कहानी गढ़ी
बात दो अजनबी से
एक होने की ओर बढ़ी
रात ने जब ख़ामोशी की चादर ओढ़ी
आँखों ने शरारत की
इस तरह हम दोनो ने
इश्क़ की पहली सीढ़ी चढ़ी
कल रात एक दूजे का हर राज़ जाना ,
रूह से रूह ने मिलके सीखा
देह का हर एक दाग़ छुपाना !
दो जिस्मों ने कल रात मिलके
एक नयी कहानी गढ़ी
बात दो अजनबी से
एक होने की ओर बढ़ी
रात ने जब ख़ामोशी की चादर ओढ़ी
आँखों ने शरारत की
इस तरह हम दोनो ने
इश्क़ की पहली सीढ़ी चढ़ी