...

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सुकून..
पग पग संग चल चल, आज कई बरसो से दो एक हो चुके है
कहने को तो है हितैशी, हितकारण बद्ध लाखकोस चल चुके है
कभी नादियों के किनारे, कभी घोड दौड़ गुब्बारे, पतंग के ओर
कभी मौन आहट से चोर सिपाई, कभी सका संग मचाते शोर

कभी घर की छत छोड़, कभी मैदानों में,खेल खेलते हुए दौड़
कभी किताबों से मुख मोड़, कभी कूद छलांग से मचाकर तोड़
कभी महानो के स्वप्र में, कभी किताबों के कटिन सवालों में
कभी सोच सोच हँसी से, कभी उससे देख अपने ख्यालों में


कभी आँखों पर पट्टी बाँधकर, कभी उजालों से आँख मून कर
कभी सच्चाई को पूर्ण जानकर, कभी कई झूटों को बोलकर
कभी एक झलक हसी देखकर, कभी अपनो को प्रगति कर
कभी एक बराबर देकर, कभी एकता को सुसजित बताकर


सब में भी कुछ पाना चाहा,पर कुछ के कारण सब चला गया
उपर्युक्त गतायें भी सही है, परंतु जो भी है, सीमौ के अंतर्गत
कुछ पुण्य कर्मो से, मिला था जो सुख दुःख भोग चला गया हूँ
अगर जीवन मतलब पूछते हो?तुम, मैंने धेर्य शब्द को कहा है
ADITYA PANDEY©