...

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वक्त और जिंदगी।
चल रहा है अनवरत
यह चक्र है वक्त का
और चल रहा संग संग
इसी से बिल्कुल बँधकर
जिंदगी ने जिंदगी सा
जिंदगी का बुना जो तराना है।।
इस चक्र के दो पाटों के मध्य
कोई साबुत दाना न पाना है
बस धूल धूल हो जाएगा
जितना भी बुना गया
लगकर लगातार लथपथ हो
हर दिलकश जो अफसाना है।।
यह वक्त भी कट जाएगा
वह वक्त फिर न आएगा
चाहे कितना सहज सरल हो
चाहे यह पूरी तरह अविरल हो
लगा जोर जरूरत से ज्यादा
पा लिया जो बनना उनका फसाना है।।
यही तो वह पैमाना है
वक्त के हर धागे से
पल पल जिंदगी का बँध जाना है,
वक्त जैसे गुजर रहा है
मिल मिट्टी संग
अनमोल समझ रहा जिसे
लेखन जीवन का सारा मिट जाना है।।
✍️राजीव जिया कुमार,
साराम, रोहतास, बिहार।





© rajiv kumar