...

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मर्द की फर्ज और उसकी चाह
हमने हमेशा अपनों के लिए जीना चाहा,पर अपने लिए जीया नहीं कभी ।
इसी बात का थोड़ा पछतावा तो है हममें, पर रोया नहीं कभी ।।

यूँ कहिये… कट रही है ज़िंदगी जैसे गुलामों सी अभी ।
जबकि सोचा था… राहें होंगी बिखरे हुये गुलाबों सी कभी ।।

लम्हें, टूटते हुये तारों की तो… कई बार देखा है हमने ।
यूँ बिखर...