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जलील है तू क्यूं
जलालत भरी जिंदगी जीने से अच्छा
ओ जलील तू कहीं दूर निकल जा
जानता हूं दुनियां है नजर का इक धोखा
चित्रपट सा ही चमकता खिंचता उलझाता है
न दिल लगाना कहीं किसी से
दिल कहता रहा यही बार बार मुझसे
कुछ समझ लेना इस दुनियां को पढ़ के
वो अहसास लिखें हैं जो बिखरे धुल कणों के से
जिस पर भी कभी दिल यकीन करता
पानी के बुलबुले सा बिखरता
उम्मीद कर कब तक झुठ को सच कहता
कालख भरे दाग ही थे वो उजाला कहां होता
© सुशील पवार
ओ जलील तू कहीं दूर निकल जा
जानता हूं दुनियां है नजर का इक धोखा
चित्रपट सा ही चमकता खिंचता उलझाता है
न दिल लगाना कहीं किसी से
दिल कहता रहा यही बार बार मुझसे
कुछ समझ लेना इस दुनियां को पढ़ के
वो अहसास लिखें हैं जो बिखरे धुल कणों के से
जिस पर भी कभी दिल यकीन करता
पानी के बुलबुले सा बिखरता
उम्मीद कर कब तक झुठ को सच कहता
कालख भरे दाग ही थे वो उजाला कहां होता
© सुशील पवार
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