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Genre of inspiration
कुछ बुझते हुए सिगारों को, फिर से सुलगाना बाकी है।
ठंडे से पड़े इस तेवर का, फिर से जल जाना बाकी है।

है उम्र यही कुछ करने की, कुछ तो कर जाना बाकी है।
आरंभ तो कर, इस मनःसमर में, फिर गुर्राना बाकी है।

सूखी सी पड़ी इस मिट्टी में, बारिश का आना बाकी है।
कांटो से भरे गुलशन में अब, गुल का खिल जाना बाकी है।

है चाह वही कुछ और नहीं, इसे फिर से पाना बाकी है।
ये राह वही, ये लीक वही, इनपर चल जाना बाकी है।

ये सृष्टि वही, श्रृंगार वही, इसे फिर से सजाना बाकी है।
भगवान भी मैं, इंसान भी मैं, सबको समझाना बाकी है।
© stupid_me