...

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...आखिर क्यूँ ?
जब दूर तक साथ चलना नहीं था तो साथी बनाया ही क्यूँ था?
जब अपनापन ही नहीं था तो यह जज़्बात जगाया ही क्यूँ था?

मेरे हृदय के जख्मों पर शब्दों का मलहम लगाया ही क्यूँ था?
जब दूर तक साथ चलना नहीं था तो साथी बनाया ही क्यूँ था?

प्यार जब था नहीं मुझसे, तो अपनापन दिखाया ही क्यूँ था?
अकेला था, रह लेता अकेला ही, तुमने पुकारा ही क्यूँ था?

वक्त नहीं था पास तुम्हारे, फिर मुझको बहलाया ही क्यूँ था?
प्यार जब था नहीं मुझसे, तो अपनापन दिखाया ही क्यूँ था?

प्रेम नहीं था मन में तो, मेरे लिए प्रेम गीत गाया ही क्यूँ था?
नहीं रह पाते तुम मेरे बिना, यह अहसास जगाया ही क्यूँ था?

तुम नहीं हो औरों के जैसे, मैंने खुद को समझाया ही क्यूँ था?
जब दूर तक साथ चलना नहीं था तो साथी बनाया ही क्यूँ था?

जब दूर तक साथ चलना नहीं था तो साथी बनाया ही क्यूँ था?
जब अपनापन ही नहीं था तो यह जज़्बात जगाया ही क्यूँ था?
© SÀTYÀM_pd @SPD_