...

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मैंने कहा
तुम न होती तो,
सुनो प्रिये !
मैं विरह के गीत गाता।
तुम हो तभी तो,
मृत शैय्या पर,
अभी मैं मुस्कराता।
बात मैंने इतनी ही कही,
और वह खित खित,
मुस्कराने लगी।

मैंने कहा,
हँसना मना है,
तुम अनोखी नार हो।
दिखता नहीं,
मेरे विरह पर,
मैं कितना लाचार हूँ।
वह घूरती रही,
बात मेरी सुनती रही।
मैंने पूछा,
क्यों घूरती हो?
वह खित-खित
मुस्कराने लगी।

भूपेन्द्र डोंगरियाल
© भूपेन्द्र डोंगरियाल