...

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महाक्लेश
धधक रही हैं कण कण माटी, भभक रही असंख्य ज्वाला,
न जाने कहां छिप कर बैठा? वो मानवता का रखवाला।

क्यों तुम्हे दया नही आती? क्यों तुम अवतार नही लेते?
ऐसी दुर्दशा देख कर भी, क्यों कोई चमत्कार नही करते?
मझधार फंसी नइया डुबती, क्यूँ देते नही सहारा?
न जाने कहां छिप कर बैठा? वो मानवता का रखवाला।

क्यों अंश तुम्हारे बिलख रहे? पर तुम हो खोए-खोए,
किन ख्वाबों में उलझे हुए? तुम हो बस सोये-सोये।
पसरी स्याह घनेरी है, सुझे नहीं कोई किनारा,
न जाने कहां छिप कर बैठा? वो मानवता का रखवाला।

उजाड़ रहा है उपवन तेरा, दानव बिकराल खड़ा है,
सब कुछ ग्रसने की जिद में वह, सृष्टि बीच अड़ा है।
हो जाएगी शुन्य धरा जो, साथ न होवे तुम्हारा,
न जाने कहां छिप कर बैठा? वो मानवता का रखवाला।

देर भई, बड़ी देर भई, अब तो प्रभू आ कर संभालो,
त्राहि-त्राहि मची है चहुं ओर, आ कर हमें बचा लो।
महाक्लेश ने घेर रखा अब, बस एक आसरा तुम्हारा,
जल्दी आओ, देर न लगाओ, हे मानवता का रखवाला।

© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।

© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey