...

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महंगी साँसे
रूह सारे बंधन तोड़, अगर उड़ जाती है
मुमकिन है उड़ने में क्या वो टकराती हैं

भाई, बहन, शौहर, बच्चे सब होते होंगे
उनको छू के शायद चेन से जा पाती होगी

सोचो जिनको मौत अकेले आती होगी
उनकी रूहे चिल्लाकर किसे बुलाती होंगी

अम्मा, बाबा, बच्चे, शौहर गैरहाज़िर हैं
पन्नी से लाशें ढककर पकड़ाती होंगी

अब भी कुछ हैं, जिनमे लालच बाकी है
साँसों की कीमत में जेवर बिकवाती होंगी

शर्म करो तुम हवा को महंगा करने वाले
बच्चे पालू, साँस खरीदूं,
और धड़कन रुक जाती होगी

© सारांश