बोझ
बहुत बोझ लगने लगी हूं...
कहीं ईंट पत्थर तो नहीं हूं...
किसी को खटकने लगी हूं...
कहीं कांटा तो नहीं हूं।
दे देता है हर कोई ताना..
कहीं बेवजह तो नहीं हूं।
अनसुना सा करते हैं लोग...
कहीं बेकार...
कहीं ईंट पत्थर तो नहीं हूं...
किसी को खटकने लगी हूं...
कहीं कांटा तो नहीं हूं।
दे देता है हर कोई ताना..
कहीं बेवजह तो नहीं हूं।
अनसुना सा करते हैं लोग...
कहीं बेकार...