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पता नहीं।
आज जरा सी लग रही है तबियत खराब।
लेकिन तबियत में क्या है खराब पता नहीं।
ये बशर है एक पत्थर का बुत केवल
या कि है बारिशों में उठता हबाब पता नहीं।
हर नजारा लगने लगा है रेत का टीला,
कहां गया चमन सब्ज़ ओ शादाब पता नहीं।
हौसले देख के कांपने लगता था डर,
क्यों गायब है तेरे चेहरे से रुआब पता नहीं।
कुछ एक जैसा है हाल आज अपना
किस बात की सजा, ये कैसा अजाब पता नहीं।
© Prashant Dixit
लेकिन तबियत में क्या है खराब पता नहीं।
ये बशर है एक पत्थर का बुत केवल
या कि है बारिशों में उठता हबाब पता नहीं।
हर नजारा लगने लगा है रेत का टीला,
कहां गया चमन सब्ज़ ओ शादाब पता नहीं।
हौसले देख के कांपने लगता था डर,
क्यों गायब है तेरे चेहरे से रुआब पता नहीं।
कुछ एक जैसा है हाल आज अपना
किस बात की सजा, ये कैसा अजाब पता नहीं।
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