...

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इंसाफ
अब तो इंसाफ की आवाज़ बुलंद करने दो
डट के मैदान मे ज़ुल्म का सर कलम करने दो ‎,

‏कब तलक इंसाफ की आवाज़ दबाते रहो गे
कितने मजलूमों कि जान यूं ही जान गवाते रहो गे,

‏ज़ुल्म तो ज़ुल्म है फिर उसे कैसे छूपाओ गे
किसी मज़लोम की आह से खुद को कैसे बचाओ गे ‎,

‏अब तो इस देश मे बेटी की हिफाज़त ना रही
घर के इन चार दीवारों में भी दारारे ही पड़ी ‎,

‏इस देश के दरिंदो ने उसे खा डाला
देश की बेटी को बे मौत ही मार डाला ‎,

‏कब तलक यह सीलसिला चलता रहेगा देश में
कब तलक फिर औनियत चलती रहे गी देश में ‎!!
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