...

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ज़वाब (मेरे शब्दों में)
जब सही नहीं बोल तुम्हारी, फिर क्यों समझो खुद को संस्कारी।
झूठ बोल सच छुपाते हो ऐसे,तुम सा कोई न हो नेक जैसे।

सहारा ले माँ बाप का अपने,जाति को ऊँचा बतलाते हो,
कर्म को अपने आंका न कभी, दूसरों को गलत ठहराते हो।

मीठा ही सुनने के आदि ,कपटी को मित्र कह जाते हो, बोले सच मुख पर तो कोई , देख उसे मुँह बिचकाते हो।

मैं पर टिकी है तुम्हारी काया ,अहं से भरते जाते हो।
शून्य थे तुम शून्य ही रहोगे, जब तक झूठ में लिपटे रहोगे।
वाणी बेशक कठोर हैं मेरे, पर अपने शब्दों पर भी विचार करोगे?

गलत न देखा न देखूंगी, जरूरत पड़ी तो लड़ भी पढूंगी।
मुझे आंकने की कोशिश में खुद की हस्ति न मिट जाए तुम्हारी।

Glory♥️

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