...

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चाय और मेरी दिनचर्या
भानु की किरणे पड़ी सोते हुए मेरे चेहरे पर
खुली आंखे नजर पड़ी खिड़की पे पर्दों के पहरे पर
देखा बाहर हुई भोर
पंछी चेहचात,चेहचाते चकोर!!

कुछ देर ठेहरा मन
फिर चाय की तलव की ओर
चाय मिले सुबह की मन मुग्ध होवें विभोर
दूध मे शकर शकर मे मिठास
खुशबूदार चाय आ रही मेरे पास!!

माँ बोली लो चाय पियों
चाय के साथ इस दिन को जियो
चाय की चुस्की पीकर निकले जुबां से तारीफों के शोर
मन मुग्ध होकर अंतर्मन नाचा बसंत मे जैसे मोर!!

कुछ देर बाहर घर से जाते-जाते
आस-पास लोगो से बतलाते-बतलाते
कुछ समय के बीतने कर बाद
फिर आयी मन को चाय की याद!!

कुछ दुरी पर मिली चाय की टपरी
आग की लपटो से घिरी सुखी लकड़ी
चूल्हे पर बनती चाय और अदरक का स्वाद
मन बोला बड़ा मजा आएगा तुझे आज!!

कड़कड़ती ठण्ड और चाय की टपरी पर खड़ा मै
चाय बनते ही कंपकपाते हाथो से आगे बढ़ा मै
चाय की एक एक घूट का मजा लेते-लेते
जिंदगी की ताज़ा हुई पुरानी कई यादें!!

चाय से मेरी कितनी यादें जुडी है
सब चले गए पर चाय साथ खड़ी है
चाय तो मंजिल बाकि सब राहें है
घर की हो या टपरी की
चाय तो भाई चाय है.!!
-सुरेंद्र राठौर