याद नहीं कब देखा था ऐसा नाज़ारा
छत पर बैठे थे धूप में
नज़र पड़ी हरे हरे पेड़ो पर
छोटा सा घोसला
बार बार चिड़ियों
का आना जाना
थोड़ा सा दाना चुग कर
खुशी से चाहचाहना
उड़ती हुयी रंग बिरंगी तितली
कभी सूर्य की तपन
कभी ठंडी हवाओं से ठिठुरन
इक गिलहरी आ रही है छत पर बार बार
थोडा सा दाना...
नज़र पड़ी हरे हरे पेड़ो पर
छोटा सा घोसला
बार बार चिड़ियों
का आना जाना
थोड़ा सा दाना चुग कर
खुशी से चाहचाहना
उड़ती हुयी रंग बिरंगी तितली
कभी सूर्य की तपन
कभी ठंडी हवाओं से ठिठुरन
इक गिलहरी आ रही है छत पर बार बार
थोडा सा दाना...