क्षितिज़
प्यार कभी भी किसी से भी हो सकता है
पर जिससे प्यार है वो भी हमें प्यार करे ऐसा ज़रूरी तो नहीं
मुझे ऐसा उसने कहा था...
नाम उसका क्षितिज़
वो मुझे भीड़ में दोस्त सा मिला था।
सज़ाओ में पनाह सा मिला था
वो मेरे स्कूल का यार था
कविताओं में उसका नाम मिला था
किसी ख़्वाब सा खूबसूरत था वो
अक्सर आँखे मिलती थी उससे
रोज़ निगाहों से बाते होती थी उससे
उसके ना होने पर
दिन मेरा सूना हुआ करता था
खामोशियों के बिच हम इशारों में बोलते थे
उसके सारे राज़ मेरे पे रुकते थे
वो जानता था मैं उसकी वो तिजोरी हूं
वो जानता था वो जो बोले मैं सब मानती हूँ
वो अक्सर अपने अंधेरों के राज़ छुपाता था
सच कहूं तो वो हमारे उम्र से काफी बड़ा था
वो अक्सर कहता था वो अच्छा बंदा नहीं है
पर मुझे उसकी बुराई दिखती ही नहीं थी
अक्सर हम स्कूल से बहार ट्रैफिक लाइट में मिलते थे
मैं उसे बस से देखती और वो बस के इंतज़ार में मुझे देखा करता था
मुझे गालियों का ट्रेनिंग उसी ने दिया था
दिल्ली जैसे शहर में गाली जाने बिना मेरा जीना जो हराम था
पर पता नहीं क्यों उसके आवाज़ भर से ही मेरी सांसे रुक सी जाती थी
उसके पास होने से धड़कने बहुत तेज़ हो जाती थी
फ़िर जब समझ आया की ये सारी चीज़े क्यों थी
तो बस वो मेरे अंदर बढ़ती रही
मेरा उसे निहारना, उससे बात करना भी बढ़ता रहा
हां मुझे इश्क़ हो गया था उससे,
सब समझ रहे थे बस मैं नहीं
पर जब समझ आया तब तक...
पर जिससे प्यार है वो भी हमें प्यार करे ऐसा ज़रूरी तो नहीं
मुझे ऐसा उसने कहा था...
नाम उसका क्षितिज़
वो मुझे भीड़ में दोस्त सा मिला था।
सज़ाओ में पनाह सा मिला था
वो मेरे स्कूल का यार था
कविताओं में उसका नाम मिला था
किसी ख़्वाब सा खूबसूरत था वो
अक्सर आँखे मिलती थी उससे
रोज़ निगाहों से बाते होती थी उससे
उसके ना होने पर
दिन मेरा सूना हुआ करता था
खामोशियों के बिच हम इशारों में बोलते थे
उसके सारे राज़ मेरे पे रुकते थे
वो जानता था मैं उसकी वो तिजोरी हूं
वो जानता था वो जो बोले मैं सब मानती हूँ
वो अक्सर अपने अंधेरों के राज़ छुपाता था
सच कहूं तो वो हमारे उम्र से काफी बड़ा था
वो अक्सर कहता था वो अच्छा बंदा नहीं है
पर मुझे उसकी बुराई दिखती ही नहीं थी
अक्सर हम स्कूल से बहार ट्रैफिक लाइट में मिलते थे
मैं उसे बस से देखती और वो बस के इंतज़ार में मुझे देखा करता था
मुझे गालियों का ट्रेनिंग उसी ने दिया था
दिल्ली जैसे शहर में गाली जाने बिना मेरा जीना जो हराम था
पर पता नहीं क्यों उसके आवाज़ भर से ही मेरी सांसे रुक सी जाती थी
उसके पास होने से धड़कने बहुत तेज़ हो जाती थी
फ़िर जब समझ आया की ये सारी चीज़े क्यों थी
तो बस वो मेरे अंदर बढ़ती रही
मेरा उसे निहारना, उससे बात करना भी बढ़ता रहा
हां मुझे इश्क़ हो गया था उससे,
सब समझ रहे थे बस मैं नहीं
पर जब समझ आया तब तक...